केलण भाटियों के नियम और असूल

                              राव केलण ना केवल उत्कृष्ठ योद्धा थे बल्कि वह उत्तम प्रशासक और गणनायक भी थे | उन्होनें अपने मरने से पहले अनेक निर्देशऔर उपदेश दिए जो की पूगल सहित केलण राजाओं और केलण वंशजों के लिए पथ-प्रदर्शक की भांति महत्वपूर्ण थे और आज भी केलण भाटी इनकी तन-मन – धन से पालना करते हैं| ये उपदेश हैं:-


(1) पूगल के राव कभी भी गढ़ में पड़दायत (पासवान) नही रखेंगे |
(2) नाथों को उच्च सम्मान दिया जायेगा |
(3) मंदिर , मस्जिद और सभी धार्मिक स्थानों को बराबर मानते हुवे इनकी रक्षा की जाए |
(4) रोजगार , धर्म , जायदाद और जागीर के लिए हिन्दू और मुसलमानों के अधिकार सम्मान होंगे |
(5) किसी राव की मृत्यु हो जाने के बारह दिन पश्चात् एक जन सभा बुलाई जाएगी, जिसमें जनता के अलावा प्रधान, प्रमुख भाटी एवम अन्य सामंत उपस्थित होंगे | इनकी राय से ही दिवंगत राव के उत्तराधिकारी की घोषणा की जाएगी |
(6) प्रत्येक धार्मिक और शाही समारोह में पूगल के राव, राव केलण की पाग धारण करेंगे और अपने दाहिने हाथ में उनकी तलवार रखेंगे |
(7) राजदरबार में दाहिना प्रथम स्थान मोतिगढ़ के सिंहरावो के प्रमुख प्रधान को और बायीं ओर घोघा के प्रमुख पड़िहार मुसलमान को दिया जाए |
(8) वादकों और गायकों एवं अन्य कलाकारों को सम्मान, सरंक्षण और प्रोत्साहन दिया जाए | इन्हें आदरपूर्वक ” राणा और राणी ” आदि विशद और अलंकरण से संबोधित किया जाए |
(9) राज्य के प्रशासन में खानों और प्रधानों का सभी स्तर पर हस्तक्षेप होगा ताकि राज्य में सुशासन बना रहे |
(10) सिंहराव भाटी और पड़िहार मुसलमान राज्य के पैतृक प्रधान और खान होंगे |
(11) राज्याभिषेक के समय नए राव, राव केलण की पाग धारण करेंगे, अन्य पाग या साफा मान्य नही होगा |
(12) सिंहराव भाटी हमेशा ड्योढ़ीदार और जगाने कक्षों के रक्षक होंगे |
(13) उतैराव भाटी ( मारोठ के 101वें भाटी शासक राव मडमराव के वंशज) सदैब गजनी के तरत का प्रहरी नियुक्त किया गया |
(14) मुरासर के पड़िहार मुसलमान, पूगल के गढ़ के किलेदार बनाए गए |
(15) रामडा के पडिहार मुसलमान, राव के अंगरक्षक होंगे |
(16) निजी सेवकों को प्यार और स्नेह दिया जाये, इनके साथ मानवीय व्यवहार किया जाए| इन्हें रशालवाला विशेषण से संबोधित किया जाए| रशालों में से प्रमुख व्यक्ति को चवर वरदार के पद पर लगाया जायेगा और कोटवाल’ कहा जायेगा |
(17)रशालों के एक वर्ग की देखरेख में घोडें और घुडसाल रहेगी और इन्हें “स्याणी” कहा जायेगा| गणगौर और तीज के त्योहारों पर स्यानियों की पत्नी अपने सिर पर गणेश भगवान की प्रतिमा धारण करके समारोह में सबसे आगे चलेगी| भाटी केवल स्यानियों को अपना धर्म भाई बनायेंगे अन्य को नहीं |
(18) रतनू चारणों और पुष्करणा पुरोहितों को उचित सम्मान और स्थान दिया जायेगा और इनका स्थान बुजुर्गों के तुल्य माना जाए | राज-कुल में देवी सान्गीयाजी और सालिगराम की दैनिक पूजा का कार्य पुरोहित करेंगे| सन 1418 में राव केलण द्वारा राव चुंडा पर विजय के उपलक्ष में पूगल गढ़ में महिषासुरमर्दिनी की मूर्ति स्थापना करके इनकी पूजा-अर्चना का कार्य भी सेवगों को सौंपा गया |
(19) चमारों के चमार नही कहकर इन्हें मेहतर नाम से पुकारा जायेगा |
(20) नायकों की भाटियों के प्रति स्वामीभक्ति और निष्ठा का आदर किया जाए, इन्हें दशहरे पर रावण का पुतला बनाने का अधिकार दिया जाए |
(21) प्रत्येक दशहरे के त्यौहार पर दरबार का आयोजन किया जायेगा| निवर्तमान राव के पुत्र , दिवंगत राव के पुत्रों के बाद में दरबार में स्थान पायेगा| इस दिन एक बड़ी परात/थाल में चूरमा बनाया जायेगा | और सभी केलण भाटी उक्त चूरमे का ग्रास/नवाला लेंगे| इस उत्सव पर पेखना “जस जल्लों” का गान करेगा, इसे शाही गान का सम्मान आदर दिया जायेगा| इस उत्सव के समापन में चारण भाटियों की यश गाथा का गुणगान करेंगे |
(22) राज्य के हर समुदाय के मुखिया को भूमि और खेती के विशेष अधिकार दिया जायेगा और उसको विभिन्न कर लेने का भी अधिकार होगा|समुदाय के विभिन्न विवाद को वह स्थानीय अनुभवी और बुजुर्ग लोगों की सहायता से सुलझा सकता हैं | (23) प्रत्येक धार्मिक और शाही समारोह में पूगल के राव, राव केलण की पाग धारण करेंगे और अपने दाहिने हाथ में उनकी तलवार रखेंगे |
(24)चाडक पूगल के पैतृक अधिकार से मोहता(दीवान) रहेंगे और उनमें से वरिष्ठ चाडक, चौधरी के पद पर रहेंगे |
(25)राव केलण द्वारा मुल्तान से लाये गये बजाज खत्रियों के पास मोदीखाना रहेगा |
                                  राव केलण द्वारा उपरोक्त प्रतिपादित निर्देश और उपदेश की सन 1954 ई. तक पालना की गई |इसके पश्चात् पूगल का विलय राजस्थान राज्य में होने से ये उपदेश समाप्त हो गये| परन्तु इनमें से कई उपदेश प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से आज के व्यावहारिक जीवन में प्रासंगित हैं और केलण वंशज इनको मानते हैं यथा : जाळ वृक्ष को नहीं काटना और उपरोक्त वर्णित सभी जातियों को समाज में सामंजस्य के साथ उच्च सम्मान देना |

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