"कीर्ति-पुरुष राव केलण"
राव केलण रावल घडसी के उतराधिकारी रावल केहर के बड़े राजकुमार थे| उनकी जागीर आसिनकोट (वर्तमान देवीकोट) थी| उन्होंने अपने पिता से पूछे बिना महेचो से शादी करली थी इसलिए नाराज होकर रावल केहर ने उन्हें उतराधिकार से वंचित कर दिया था| वे अपनी सारी बस्ती के साथ बीकमपुर आ बसे| लोक में राव केलण और काल्हण में नाम साम्य होने के कारण दोनों को एक ही मान बैठते हैं| जबकि राव केलण ,रावल काल्हण से कई पीढ़ियों बाद हुवे थे| रावल काल्हण तो रावल जैसलजी के बड़े पुत्र और जैसलमेर के तीसरे रावल थे| जबकि रावल केलण उतराधिकार से वंचित रह जाने के बाद पुगल के शासक बने| जैसलमेर रियासत से उनका नाता ही टूट गया था|
केलण को बीकमपुर आने की सलाह उनके साथी सातल सिंघराव महीपालोत ने दी थी| तब बीकमपुर सुना पड़ा था| यह पहले जयतुंग भाटियों के पास था|उनके बाद पुगल पर मुल्तान की फ़ौज आई और उस फ़ौज ने पुगल जीतकर बीकमपुर का घेरा डाला| जयतुंग राव कोल्हा के मरने के बाद में ही बीकमपुर मुल्तान के कब्जे में आ गया था|राव कोल्हा और उनके वंशजो के द्वारा बसाये गए गांव कोल्हासर, गिरिराजसर, नगराजसर आज भी बीकानेर जिले में स्थित हैं| बीकमपुर का गढ़ स्तम्भ की तरह ऊंचा था| मुल्तान के शाह वीदा द्वारा निर्मित एक जैन मंदिर भी उसमे स्थित है| गढ़ में झाड़-झंखाड़ को खत्म करके केलण ने गढ़ का जीर्णोद्धार किया|
पुनपाल को जैसलमेर की गद्दी पर बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ परन्तु जैतसी ने उससे गढ़ हस्तगत कर लिया |पुनपाल को जैसलमेर से निकालकर पूगल दिया गया | उनके बाद उनका पुत्र राणदेव/रणकदेव पूगल का शासक बना| पुगल की गद्दी राव रणकदेव के देहावसान के बाद से खाली थी | उनका बेटा राव तणु और उसका प्रधान मेहराव हमीरोत भाटी मुल्तान के शासक के पास राव चुंडा के विरुद सहायता के लिए गया था| पर राव केलण की कूटनीति के कारण मुल्तान के शासक ने मना कर दिया| दिल्ली पर उस समय सुल्तान खिजखां सैयद था |उसकी नीति धार्मिक सहिष्णुता की थी| यह सोचकर तणु ने अपने प्रधान के साथ मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया फिर भी उनकी बात नही बनी| जब सोढ़ी रानी (रणकदेव की पत्नी) के पास कोई विकल्प नही बचा तो उन्होंने पुगल से सन्देशवाहक पेखना(गायक) को बीकमपुर भेजा| केलण के पुगल पहुचने पर सोढ़ीजी ने उनका स्वागत किया| उनके समक्ष राजगद्दी के बदले 2 शर्त रखी| पहली यह कि अपने पुत्र शार्दुलऔर रणकदेव पति की मौत का राठौडो से बदला लेना और दूसरी शर्त पुत्र तणु और उसके प्रधान का जागीर देकर भरण पोषण की व्यवस्था करना| जिसे केलण ने सहर्ष स्वीकार किया| राव बनते ही केलण ने स्वमिभक्त पेखना को मुंहमंगा इनाम देना चाहा| किवंदती हैं कि पेखना ने राव केलण को तब कहा था-
“आधी पुगल पेखने,आधी रणकदेव|
आधो गढ़ रो कानग्रो, आधी मोय जकात|
धनी केलण, रानो पेखनो,कारी पूछे तात||”
बीकानेर के उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तान की सीमा के पास स्थित पूगलगढ़ में360 गांव थे|यहाँ के भाटी राजपुतों ने सेकड़ों वर्षो तक आक्रांताओं का सामना किया| सुरक्षा के लिए दुश्मन पर आक्रमण भी किये और अपनी वीरता के दम पर इस्लामीकरण होने से बचाया भी| महारावल पुनपाल विक्रमी संवत १३३२ को पदच्युत होकर इधर -उधर नया राज्य स्थापित करने भ्रमण करते रहे । उनके पुत्र का नाम लखमन था । लखमन के पुत्र रनकदेव ने पूगल को नायको से छुडवा कर राव की पदवी प्राप्त की सिद्ध देवराज ने पूगल पर अधिकार किया था । खिंचियो ने यहाँ १० वर्ष पड़ीहारों ने ४ वर्ष पाहू भाटियों ने २३० वर्ष राज्य किया पाहू से नायको ने राज्य लिया । भटनेर और अबोहर पर भूकन अभोरिया भाटी शासक १३५१ – ८८ ई. में शासक थे| सलखा के पुत्र विरमदेव ने अवसर पाकर राज्य प्राप्त करने हेतु भूकन भाटी को मार दिया । तब डाला जोइया ने १३८७ ई . में विरमदेव को सिहाण कोट के पास मार दिया । विरमदेव के वध के समय उनके पुत्र देवराज गोगादे और चूंडा अपने ननिहाल बेदरन में अपनी माता के साथ थे । राव केलण १४१४ ई . में पूगल के राव रणक देव के गोद आये | राव केलण ने मलिनाथ राठौर की पुत्री से विवाह किया । और अपनी सगी बहिन कल्याण कँवर का विवाह कुमार जगमाल से कर दिया था । केलण की पुत्री कोडमदे राव रिडमल को ब्याही थी । उनके भांजे जोधा थे । केलण के भाई सोम को गिरान्धी की जागीरी दी गयी ।उनकी गाय मुसलमान लूट के ले गए|तो सोम ने उन पर आक्रमण कर दिया इस भिडंत में सोम वीरगति को प्राप्त हो गए| पूगल के राव केलण ने मरोठ के दुर्ग पर आक्रमण करके इसको लंगा और बलोच मुसलमानों के कब्जे से छुटाया जिसमे बिकमपाल चौहान ने उनका साथ दिया था| इसके बाद राव केलण ने खारबारा, हापासर आदि बहुत से गाँवो को अपने राज्य की सीमा में मिला लिया | राव केलण ने मुमनवाहण, केह्शेर दुर्ग ( तहसील लोद्रा,मुल्तान,पाकिस्तान) पर भी अधिकार कर लिया| इस तरह केलण ने पड़ोस में स्थित भाटी ठिकानो मारोठ, खारबारा, मुमणवाहण ,गढ़नानना, केहरोड़ , माथेलाव, भटनेर और देरावर तक पूगल राज्य का विस्तार किया| उनकी कीर्ति लोकाख्यानों में दिल्ली तक बताई गई हैं| इसके बाद राव केलण ने इस्माइल खां समा बलोच पर आक्रमण किया | इस्माइल इस आक्रमण के लिए तैयार नही था| उसने अपनी बेटी जावेदा को देकर शांति का मोल चुकाया| जब आमिर खां कोरी बलोच के समीप गढ़ बनाने लगा तो राव केलण ने उसे मना किया | उसके नहीं मानाने पर केलण ने उस पर धावा बोला और उसे मार डाला| और वह क्षेत्र अपने अधीन ले लिया| सुल्तान खिजखां सैयद ने अपने एक फरमान में उन्हें ” राव किलजी” नाम से सम्बोधित किया हैं| इतिहासकार केलण और तैमुरलंग के बीच हुई सन 1398 की भिडंत का वर्णन करते हैं| इस भिडंत का उल्लेख भटनेर के आक्रमण से हैं| भटनेर का उल्लेख तुर्कों के दस्तावेजों में “तबरहिन्द” के नाम से किया गया है,जिसका शाब्दिक अर्थ है:- हिन्द का प्रवेशद्वार| वस्तुतः भाटियों के गढ़-किले उस काल में पचिमोत्तर भारत में थे, जो बाहरी आक्रमण से बचाते थे| इन किलों में सतलज नदी के पूर्वी तट के किले- सरहिंद, अबोहर, भटिंडा, फूलडा, मारोठ, मुमणवाहण , केहरोड़ ,उंछ और तन्नोट थे| इसलिए भाटियों को ” उत्तर भड किवाड़ भाटी ” कहा जाता था| इसी के रक्षक उस समय राव केलण जी थे| जो भी साक्ष्य हो इतना सच अवश्य हैं कि राव केलण एक अद्भुत योद्धा, दूरदर्शी, राजनीतिज्ञ, महत्वकांशी और साहसी व्यक्ति थे| जैसलमेर की गद्दी से हटाए और निष्काषित राव ने जैसलमेर के समांनातर पूगल जैसे राज्य को हस्तगत किया जो कि उनके विक्रमी व्यक्तित्व का परिचायक हैं| उन्होंने तत्कालीन शक्ति राठौडो के नायक राव चुंडा को १४१८ ई उनके घर में घुसकर नागौर के पास जाकर मारा और अपने वचन को पूर्ण किया| ख्यातों में उनकी कीर्ति को इस तरह बखाया गया हैं:-
“पूगल,बिन्कुपुर,पुनवी,मुमनवहण मरोट|
देरावर नै केहरोर,केलण इतना कोट||”
राव केलण के तीन रानियाँ थी:-1. माहेची रानी 2. सोढ़ी रानी 3. बेगम जावेदा| राव केलण के 24 पुत्र हुवे इनके नाम :-चाचा,देवा,आसा, महिरावर,रणमल, रूपा, एका,विक्रमादित्य, सोडगण, लाखण, पूरण, मल, कलिकरण, भोज, लुन, अभा, महपा, दुदा, देपो, रणधीर, नंदा, हरभुम और थिरा एवम खुमान ( पठान रानी से उत्पन्न संतान जोकि मुस्लिम धर्मं अपना लिया )| इनके कुल 24 कुंवर जिसमे से 13 का वंशज चला और बाकि 11 का नहीं| केलण की पुत्री का नाम कोडमदे, राव रिडमल को ब्याही थी ।
राव केलन का स्वर्गवास १४३० को ७२ वर्ष की आयु में हुआ ।राव केलण के बेटों का वर्णन:- (1) चाचक्देव-पूगल के अधिपति (2) रिनमल-बीकमपुर,इसके वंशज खरडवाले भाटी| (3) विक्रमादित्य-खिरवा (4) अको-शेखासर,टेपू (5) कलीकरण-ताडानै (6)हरभम-नाचनो और सरूपर (7,8) जावेदा के पुत्र- थिरा और खुमाण भी हिन्दू ही थे पर रक्त की शुद्धता नही होने के कारण उन्हें भटनेर दिया गया| इनके वंशज भट्टी-मुसलमान बनते गए| जोकि वर्तमान पाकिस्तान में हैं| केलण के पुत्र अरवा के पुत्र शेखा ने शेखासर गाँव बसाया । अखा के वंशज सेखा सरिया केलण भाटी कहलाये । राव केलण के पश्चात् राव चाचकदेव गादी १४३० -१४४८ ई . विराजे । राव चाचकदेव की ४ रानिया थी । रानी लालकंवर सोढ़ी । सुरजकंवर चौहान , सोनल सेती मुसलमान ,राणी लंगा कोरियो की पुत्री , १ सोढ़ी ,लालकंवर से बरसल , २ महरबान ३ भीमदे मेहरबान को बलर के रूकनपुर की जागीरी दी । ये मुस्लमान हो गए । रानी चौहान के पुत्र रणधीर को देरावर के खडाल की जागीरी प्रदान की । रणधीर के पुत्र १ वीरमदे २ लक्ष्मण ३ मूला ४ अजो थे । वीरमदेव के पुत्र वीजा के पुत्र नेता के वंशज नेतावत भाटी कहलाये । इनके वंशज नोख , सेवड़ा ,मेंबसते है । राव बरसल १४४८ – १४६४ अपने पिता की म्रत्यु के बाद पूगल की राजगददी पर बैठे । कालालोदी ने राव चाचकदेव को दुनियापुर ( कोलायत ) में मारा था । राव बरसल ने दुनियापुर व् मुमन वाहन काला लोदी मुलतान शासक से छीन लिए । बिकमपुर से हासिम खान को मार भगाया । राव बरसल ने १४४७ में बरसलपुर किले का निर्माण करवाया था । सेखो राव , तिलोकसी ,जोगायत ,जगमाल । वे रांगर रा दीकरा एक एक हुंभल । सेखो राव १४६४ -१५०० अपने पिता की म्रत्यु के बाद १४६४ ई . में राव बने । देवी करनी जी का जन्म १३८७ ई . में देश नोक में तथा समाधी १५३८ इ में ली जांगलू के नापा सांखला ने अपने भांजे बीका को ८४ गाँव दिए इस प्रकार १४६५ में देवी कृपा से जांगलू स्वामी बन गए । राव सेखा के अधिकार पूगल के अलावा भटनेर , बीकमपुर , बीजनोत ,देरावर ,मारोट ,मुमनवाहन ,किरोहर ,दुनियापुरक के प्रसिद्द किले थे । सेखा को मुलतान के बादशाह ने बंदी बना लिया था । करनी जी ने उन्हें मुक्त करवाया । सेखा की पुत्री रंग कँवर का विवाह बीका के साथ हुआ । भाटियों का दूसरा युद्ध भाटी कलकरण व् बीका के साथ हुआ । इसमें कलकरण मारे गए । राव बरसलपुर की मृत्यु १५०० ई में हुयी । इनके पुत्र १ हरा २ बाघसिंह ३ खेमाल नामक थे । हरा पूगल के राव बने । खेमाल बरसल पुर सहीत ६८ गाँव प्रदान किये । जिनके वंशज खींया भाटी कहलाये । मुख्यालय हापासर था । इनके वंशज नामी किसनावत केलण भाटी कहलाये । १ रावत खेमाल २ राव जेतसिंह ३ मालदेव ४ मंडलीकजी ५ नेतसिंह ६ प्रथ्विसिंह ७ दयालदास ८ करणीसिंह ९ भानीसिंह बरसलपुर के राव हुए । बरसलपुर का युद्ध मुलतान के शासक के साथ हुआ जिसमे रावत खेमाल शहीद हुए ।
राव केलण का मुल्यांकन एवम सार:-
1. राव केलण के शौर्य , वीरता एवम सहस ने सबसे ज्यादा तत्कालीन भारत को प्रभावित किया| उनके अनुसार अपने गढ़ की रक्षा का सर्वक्ष्रेष्ठ तरीका उस शत्रु पर आक्रमण करना हैं|
भाटी वंश की गरिमा एवम समृधि में उनका अतुलनीय योगदान रहा हैं|
2. उसने बीकमपुर, मारोठ, पुन्गल, मुमनवाहन, भटनेर,केहरोर,बिजनोत, देरावर,माथिलाव, नानणकोठ और डेरागाजी आदि 11 तत्कालीन सामरिक महत्त्व के किलों को जीता| यह उनकी उन्नत सोच और वीरता को प्रदर्शित करती हैं| मुह्नोत नैणसी एवम कई फारसी-विदेशी इतिहासकारों ने उनकी वीरता पर अपनी लेखनी चलाई हैं|
3. उनको राव की पदवी मुल्तान के शासक इस्माइल खां के द्वारा दी गयी हैं| मुस्लिम शासकों के उनके संबद्ध उनकी युद्ध कूट नीति की विकसितता को प्रदर्शित करती हैं|
4. राव चूंडा का वध करना ,उनके युद्ध कौशल को दिखाता हैं| उनके राज्य का विस्तार सात दुर्गो की विजय के साथ सिंध-पाकिस्तान तक फैलाया|
5.खिस खां सैयद एवम शेखा खोखर की पराजय में राव केलण की अहम् भूमिका रही हैं|
6.फौलाद तर्कु बच्चा का विद्रोह एवम शेख अली की पराजय में राव केलण की युद्ध क्षेत्र में अहम् भूमिका रही हैं|
7.राव केलण ने तैमुर के विरुद कड़ा संघर्ष किया एवम भटनेर की स्वतंत्रता में उनकी भूमिका अमूल्य हैं|
उनका जीवन चरित्र ,उनकी वीरता एवम युद्ध कौशल को दर्शाता हैं साथ ही भाटी वंश के लिए वो हमेशा आदर्श हैं और हमारी संस्कृति के सरंक्षक हैं|उनके भाटी राजपूतों को दिए गये उपदेश आज भी प्रासंगिकता रखते हैं| राव केलण के जीवन-परिचय और शौर्य-गाथा पुस्तक “पूगल का इतिहास” (लेखक डॉ. हरि सिंह भाटी ) में उपलब्ध हैं | यह पुस्तक टेपू की वेबसाइट में लाइब्रेरी में भी उपलब्ध हैं|


