सती माता हर कंवर


1. बचपन एवम परिचय: सती भुआ सा का जन्म टेपू गाँव में कृष्ण जन्माष्टमी के दिन खेतसिंह जी के घर हुआ | आपकी माता का नाम बदल कंवर और भाई के नाम धुड सिंह, मानसिंह, विजयसिंह हैं| आपका बचपन अच्छा हँसता खेलते बीता| सती माताजी का स्वभाव बहुत ही सरल,निर्मल और मिलनसार था| आपकी शादी 17 वर्ष की उम्र में रुपावत राठौड ठिकाना मुन्जासर में श्री कोजराज सिंह से हुई|आप धार्मिक कार्यों में काफी रूचि रखते थे | और आप ससुराल में भी भागवत कथा सुनते थे और भजन भाव किया करते थे |आप सुबह 4 बजे उठकर पूजा पाठ करते थे | करणी माता के मंदिर का निर्माण आप द्वारा सफ़ेद कलर के पत्थर की मूर्ति रखकर गोबर से किया गया| वर्तमान में इस मंदिर का नवसर्जन श्री आईदानसिंह जी ने किया | इसी पूजा के फल से आपका शक्ति रूप में अवतरण हुआ| आप अपने घर पर ही खुद के हाथ का खाना खाते थे दुसरे के हाथ का आप खाना नही खाते थे | पानी भी आप अपने जलपात्र से पीते थे जो आप हमेशा साथ रखते थे |गाय को हमेशा रोटी देना और कन्या को खाना खिलाना आपका नित्य का नियम था |


2. पारिवारिक परिचय एवम व्यक्तित्व: आये मेहमान का आप काफी आदर सत्कार करते थे | आपके सरल और अनुभवी स्वभाव के कारण सभी आपसे सलाह और धार्मिक बातें सुनने आते थे| आपके परिवार में पुत्रों के नाम किशन सिंह , अचल सिंह, प्रेम सिंह एवम आपकी पुत्रियों के नाम पेपकंवर, प्रेम कंवर, उगम कंवर हैं|पारिवारिक जीवन में पूर्ण सुख-समृधि और खुशहाली का माहौल था| आपके पति की स्वाभाविक मृत्यु हो गई| आपके पति की आकस्मिक देहांत हो जाने के पश्चात् देवीय प्रताप से आपने सतीत्व को प्राप्त किया | क्योंकि आप स्वयं शक्ति का रूप थी|

3. सतीत्व धारण: पति के देहांत हो जाने के बाद आपने सती होने का निर्णय लिया परन्तु कुछ ग्रामीणों ने इसका विरोध किया | सतीत्व की देवी माता ने अपना निर्णय अटल बताया | खड़े बाल एवम कन्या के समान सवर्ण रूप से गाँव के अनुभवी लोगों ने उनके सतीत्व को पहचान लिया | अंत में सभी उनके निर्णय से सहमत हो गये |आपका रूप सती के लिए मुन्जासर में स्थित पहाड़ी की तरफ जाते समय अत्यंत दिव्य हो गया| 70 वर्ष की उम्र में भी आपका शरीर 18 वर्ष की कन्या की तरह प्रतीक हो रहा हैं| आपके बाल माँ काली की तरह बिखरे और रूप देवी की तरह दिव्य प्रतीत हो रहा था| दूर से ऐसे लगा रहा था जैसे सती माता हवा में चल रहे हों| एक पैर जमीन में रखकर अगला पैर रखने तक ऐसा लगता था मानो कि इसमें काफी ज्यादा समय लगा हो | सती होने से पूर्व आपने देवित्व-स्थान ( गाँव में या गाँव से बाहर )माँगा | गाँववालों द्वारा बाहर कहने से आज भी माता की अनुकम्पा मुन्जासर गाँव की तुलना में बाहर के लोगों पर ज्यादा हैं| माता के सतीत्व का विरोध करने वालों पर भी माता ने अपनी दया द्रष्टि रखी और उनको आशीर्वाद देते हुवे अपनी अनुकम्पा दिखाई|आपने पति कोजराजसिंहजी को गोद में लेकर मुन्जासर पहाड़ी पर सतीत्व को प्राप्त किया | आपका मंदिर ग्राम टेपू उपभाग भवानीपूरा और मुख्य शक्ति पीठ मुन्जासर में स्थित हैं | जो भी व्यक्ति आपके मंदिर आता हैं | उसकी सारी मनोकामना पूर्ण होती हैं और उसकी दुःख पीड़ा दूर हो जाती हैं|

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